चाणक्य नीति: ये 4 लोग दूसरों के पाप के होते हैं भागीदार, जानिए क्या कहती है आज की चाणक्य नीति

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आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में जीवन के कई पहलुओं का जिक्र किया है। चाणक्य ने एक श्लोक के जरिए बताया है कि कब मनुष्य को दूसरे को पापों की सजा मिलती है। चाणक्य का मानना है कि धरती पर चार तरह के व्यक्ति हैं जो जीवन में दूसरों के कामों की वजह से मुश्किलों से घिरते हैं। चाणक्य बताते हैं कि किस प्रकार के व्यक्ति को किनके पापों का फल भोगना पड़ता है। पढ़ें क्या कहती है आज की चाणक्य नीति-

राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञ: पापं पुरोहित:।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा।। 

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि राजा को राष्ट्र के पापों का फल भोगना पड़ता है। राजा के पापों का फल पुरोहित को भोगना पड़ता है। जीवनसाथी के पापों को उसके पार्टनर को भी भोगने पड़ते हैं और शिष्य के पाप गुरू भोगते हैं।

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आसान शब्दों में कहा जाए तो राजा या प्रशासक अगर राष्ट्र को ठीक से नहीं चलाता और अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता है तो उससे होने वाली हानि या जनता के गलत कामों का फल देश को भोगना पड़ता है। राजा का कर्तव्य होता है कि वह यह सुनिश्चित करे कि देश में कोई गलत काम न करें। वहीं जब राजा कर्तव्यों का पालन नहीं करता तो देश की जनता उसके खिलाफ हो जाती है और बुरे काम शुरू कर देती है। ऐसे में राजा को जनता के कामों का फल भोगना पड़ता है।

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पुरोहित का धर्म राजा को सही व उचित सलाह देना होता है। राजा के फैसले से होने वाले नुकसान के जिम्मेदार भी वही हते हैं। ऐसे में पुरोहित, मंत्री या सलाहकार को हमेशा सही सलाह ही देनी चाहिए।

अगर पति गलत काम करता है तो उसका परिणाम पत्नी को भी भोगना पड़ता है। इसी प्रकार पत्नी के पापों की सजा पति को भी मिलती है। ठीक इसी तरह शिष्य या छात्र के द्वारा किए गए पाप का फल गुरु को सहना पड़ता है।

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