अफगान सेना पर खर्च किए गए अरबों डॉलर से तालिबान को मिला फायदा

वॉशिंगटन: शायद ही किसी ने सोचा था कि 20 सालों में 83 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से तैयार और प्रशिक्षित अफगान सुरक्षाबलों के पांव तालिबान के सामने इतनी तेजी से पूरी तरह उखड़ जाएंगे. कई मामलों में तो अफगान सुरक्षाबलों की तरफ से एक गोली तक नहीं चलाई गई. ऐसे में सवाल उठता है कि अमेरिका के इस भारी-भरकम निवेश का फायदा किसे मिला, जवाब है तालिबान.

तालिबान ने अफगानिस्तान में सिर्फ राजनीतिक सत्ता पर ही कब्जा नहीं जमाया, बल्कि उन्होंने अमेरिका से आए हथियार, गोलाबारूद, हेलिकॉप्टर आदि भी अपने कब्जे में ले लिए. तालिबान को सबसे बड़ा फायदा तब हुआ जब प्रांतीय राजधानियों और सैन्य ठिकानों पर चौंकाने वाली गति से कब्जा करने के बाद उसकी पहुंच लड़ाकू विमानों तक हो गई. हफ्ते भर में उसके पास काबुल का नियंत्रण भी आ गया.

अमेरिका के एक अधिकारी ने सोमवार को इस बात की पुष्टि की कि तालिबान के पास अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में आपूर्ति किए गए हथियार अचानक बड़ी मात्रा में पहुंच गए हैं. इस मामले पर सार्वजनिक तौर पर चर्चा के लिए अधिकृत नहीं होने की वजह से अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बात की.

“रुपयों से आप इच्छाशक्ति और नेतृत्व नहीं खरीद सकते”
रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के मुख्य प्रवक्ता जॉन किर्बी ने सोमवार को कहा, ‘रुपयों से आप इच्छाशक्ति नहीं खरीद सकते. आप नेतृत्व नहीं खरीद सकते.’ जॉर्ज डब्ल्यू बुश और ओबामा प्रशासन के दौरान अफगान युद्ध की प्रत्यक्ष रणनीति में मदद कर चुके सेना के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डोग ल्यूट ने कहा कि अफगान बलों को जो मिला वो मूर्त संसाधनों रूप में था लेकिन उनके पास महत्वपूर्ण अमूर्त चीजों की कमी थी.

अफगानिस्तान में 2001 में युद्ध देख चुके क्रिस मिलर ने कहा, “अगर हम कार्रवाई के तौर पर उम्मीद का इस्तेमाल नहीं करते तो… हम यह समझ पाते कि अमेरिकी बलों की त्वरित वापसी से अफगान राष्ट्रीय बलों में यह संकेत गया है कि उन्हें छोड़ दिया जा रहा है.” मिलर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के अंत में कार्यवाहक रक्षा मंत्री भी रहे थे.

आर्मी वॉर कॉलेज के रणनीतिक अध्ययन केंद्र के एक प्रोफेसर ने 2015 में पूर्व के युद्धों की सैन्य विफलताओं से सबक सीखने के बारे में लिखा था. उन्होंने अपनी किताब का उपशीर्षक रखा था- “अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बल क्यों नहीं टिक पाएगा.”

अफगान सैन्य निर्माण की कवायद पूरी तरह से अमेरिकी उदारता पर निर्भर थी यहां तक कि पेंटागन ने अफगान सैनिकों के वेतन तक का भुगतान किया. कई बार यह रकम और ईंधन की अनकही मात्रा भ्रष्ट अधिकारियों और सरकारी पर्यवेक्षकों द्वारा हड़प ली जाती जो आंकड़ों में सैनिकों की मौजूदगी दिखाकर आने वाले डॉलर अपनी जेबों में डालते जाते थे. 

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