श्रीलंका के खिलाफ UNHRC में प्रस्ताव पारित, भारत रहा वोटिंग से दूर

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जिनेवा: श्रीलंका के मानवाधिकार रिकॉर्ड के खिलाफ जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में मंगलवार को पारित कड़े प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहे भारत ने कोलंबो से आग्रह किया कि वह द्वीपीय देश में सुलह प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और तमिल समुदाय की आकांक्षाओं के समाधान के लिए राजनीतिक प्राधिकार के हस्तांतरण की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करे.

यूएनएचआरसी ने ‘प्रमोशन ऑफ रीकंसिलिएशन अकाउंटैबिलिटी एंड ह्यूमन राइट्स इन श्रीलंका’ शीर्षक वाला प्रस्ताव पारित किया. श्रीलंका पर कोर समूह द्वारा पेश प्रस्ताव के समर्थन में 47 में से 22 सदस्यों ने मतदान किया जबकि ग्यारह सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया. कोर समूह में ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी जैसे देश शामिल हैं. भारत उन 14 देशों में शामिल था, जो मतदान में शामिल नहीं हुए.

मतदान से पहले, भारत ने कहा कि एक नजदीकी पड़ोसी होने के नाते उसने 2009 के बाद श्रीलंका में राहत, पुनर्वास, पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में योगदान दिया है.

जिनेवा में भारत के स्थायी मिशन के प्रथम सचिव पवन कुमार बधे ने एक बयान में कहा कि श्रीलंका में मानवाधिकारों के सवाल पर भारत का दृष्टिकोण दो मौलिक विचारों द्वारा निर्देशित है. उन्होंने कहा, ‘‘एक श्रीलंका के तमिलों को समानता, न्याय, सम्मान और शांति के लिए हमारा समर्थन. दूसरा श्रीलंका की एकता, स्थिरता और क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करना.’’

बधे ने कहा, ‘‘हमने हमेशा माना है कि ये दोनों लक्ष्य पारस्परिक रूप से सहायक हैं और श्रीलंका की प्रगति दोनों उद्देश्यों को संबोधित करते हुए अच्छी से सुनिश्चित हो सकती है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम आग्रह करेंगे कि श्रीलंका सरकार सुलह प्रक्रिया को आगे बढ़ाये, तमिल समुदाय की आकांक्षाओं को सुने और यह सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ रचनात्मक रूप से संलग्न रहना जारी रखे कि उसके सभी नागरिकों की मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की पूरी तरह से रक्षा हो.’’

बधे ने कहा कि भारत श्रीलंका सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के इस आह्वान का समर्थन करता है कि वह राजनीतिक प्राधिकार के हस्तांतरण पर अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करे जिसमें प्रांतीय परिषदों के लिए चुनाव जल्दी कराना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि सभी प्रांतीय परिषदें श्रीलंका के संविधान के 13 वें संशोधन के अनुसार प्रभावी ढंग से संचालित हो सकें.

13वें संशोधन में तमिल समुदाय को प्राधिकार के हस्तांतरण का प्रावधान है. भारत 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद लाया गया 13वां संशोधन लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव बना रहा है.

सत्तारूढ़ श्रीलंका पीपुल्स पार्टी के बहुसंख्यक सिंहली कट्टरपंथी 1987 में स्थापित द्वीप की प्रांतीय परिषद प्रणाली को समाप्त करने की वकालत करते रहे हैं.

वहीं बधे ने कहा कि भारत का मानना ​​है कि मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (ओएचसीएचआर) के ह्यूमन आफिस का कार्य संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रासंगिक प्रस्तावों द्वारा दिए गए अधिदेश के अनुरूप होना चाहिए.

अगले महीने तमिलनाडु में होने वाले चुनावों से पहले राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों ने भारत सरकार से यूएनएचआरसी सत्र में श्रीलंका के खिलाफ जवाबदेही और सुलह के संकल्प के साथ रुख अपनाने का आग्रह किया था.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जनवरी में श्रीलंका की अपनी यात्रा के दौरान श्रीलंका की सुलह प्रक्रिया और एक ‘‘समावेशी राजनीतिक दृष्टिकोण’’ के समर्थन को रेखांकित किया था जो जातीय सद्भाव को प्रोत्साहित करता है.

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