समस्त तीर्थों के दर्शन का फल प्रदान करता है यह पावन व्रत 

0
70
Facebook
Twitter
Pinterest
WhatsApp

वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी या जानकी नवमी का त्योहार मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार इसी दिन मां सीता का जन्म हुआ था। महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से बालिका का प्राकट्य हुआ। हल के नोक को सीता कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम सीता रखा गया। 

माता सीता अपने त्याग और समर्पण के लिए पूजनीय हैं। इस दिन श्री सीतायै नमः का जाप करें। इस दिन जानकी स्तोत्र, रामचरित मानस का पाठ करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। माता सीता को मां लक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है। माता सीता को पीले फूल, कपड़े और शृंगार की सामग्री अर्पित की जाती है। घर के मंदिर में सभी देवी-देवताओं को गंगाजल से स्नान कराएं। माता सीता को दूध और गुड़ से बने प्रसाद अर्पित करें। दिनभर व्रत रखें। शाम को पूजा कर इसी प्रसाद को ग्रहण कर अपना व्रत खोलें। इस व्रत को विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घ आयु के लिए करती हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान श्रीराम-माता सीता का विधि-विधान से पूजन करने से पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल प्राप्त होता है। सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी का पूजन-अर्चन करते हैं, उन्हें सभी सुख-सौभाग्य प्राप्त होते हैं। अगर किसी कन्या के विवाह में बाधा आ रही हो तो उसे भी यह व्रत अवश्य करना चाहिए। 

इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

Source link

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here