FD से मिलने वाला रियल रिटर्न रह सकता है कम, बैंक डिपॉजिट पर निर्भर रहने वालों को उठाना पड़ेगा नुकसान- रिपोर्ट

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सरकार छोटी बचत योजनाओं की दरों को कम करने के अपने फैसले को पलट चुकी है लेकिन ऐसा होने से बैंक डिपॉजिट पर निर्भर रहने वाले बचतकर्ताओं को नुकसान उठान पड़ सकता है. फरवरी महीना फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) से नेगेटिव रियल रिटर्न का 10 वां सीधा महीना था. जबकि कुछ लेंडर्स जैसे कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्प (HDFC) ने हाल के महीनों में जमा दरों में वृद्धि की है. गौरतलब है कि अगले सप्ताह की मौद्रिक नीति समीक्षा भविष्य की दरों का निर्धारण कर सकती है.

देश के सबसे बड़े Lender के साथ जमा राशि पर 5 प्रतिशत ब्याज

टैक्स और इन्फलेशन के लिए समायोजित एसबीआई के साथ एक साल के रिटेल टर्म डिपॉजिट पर अगस्त में 1.53 ​​प्रतिशत की दर से रिटर्न था. वहीं देश के सबसे बड़े बैंक के साथ एक साल की जमा राशि पर 5 प्रतिशत की दर से ब्याज मिलता है, जो 30 प्रतिशत की कर दर मानते हुए 3.5 प्रतिशत प्रभावी प्रतिफल पर काम करता है. हेडलाइन कंज्यूमर मुद्रास्फीति की 5.03% की दर जमाकर्ता के लिए नकारात्मक रिटर्न का परिणाम है. जमाकर्ताओं में अब अपेक्षाकृत कम गिरावट आई है क्योंकि 2020 के उत्तरार्ध में इन्फलेशन उच्च से कम हो गई और रेपो दर में कटौती नहीं हुई.

आरबीआई गवर्नर ने छोटी बचत योजनाओं की ओर किया था इशारा

वहीं फरवरी की मौद्रिक नीति के बाद, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सवाल उठाया था कि क्या केंद्रीय बैंक का ” यील्ड कर्व  के क्रमिक विकास” पर फोकस करना सेवर्स को नुकसान पहुंचा रहा था? उन्होंने इंवेस्टमेंट एवन्यू के रूप में छोटी बचत योजनाओं की ओर इशारा किया था. इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि जब बैंक अपनी उधार दरों को कम कर रहे हैं, स्वाभाविक रूप से, इसका हिस्सा भी बचतकर्ताओं को जाता है. हमें यह भी समझना चाहिए कि छोटी बचत योजनाएं, जिन्हें सरकार चलाती है या RBI जो योजनाएं चलाती हैं, वे अन्य एवन्यू हैं और छोटे निवेशक व छोटे बचतकर्ता इन सुविधाओं का उपयोग कर सकते हैं. ”

मुद्रास्फीति एशिया में बहुत ही अनुकूल रही है

बता दें कि जनवरी में, एसबीआई ने अपनी एक साल की एफडी दर 10bps बढ़ाकर 5% और एचडीएफसी ने हाल ही में जमा दरों में 25bps  तक की वृद्धि की. कुछ अन्यों ने भी अब दरों को ऊपर की ओर बढ़ा दिया है. वहीं मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने कहा कि मुद्रास्फीति एशिया में बहुत ही अनुकूल रही है, लेकिन इसमें बदलाव किया जा सकता है. “भारत और फिलीपींस अपवाद हैं. इन अर्थव्यवस्थाओं में, मुद्रास्फीति कंफर्ट लेवल से ऊपर है और नीति निर्माताओं के लिए चैलेंजस की लिस्ट में शामिल हैं.

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