कौए को शनिदेव का वाहन बनने से पहले देनी पड़ीं थी कई परीक्षाएं 

Mahima Shani Dev ki : सूर्यलोक में पिता सूर्यदेव के ताप से बचने के लिए जंगल में रह रहे शनिदेव के बारे में जब तीनों लोकों में देव, दानव और मानवों को पता चल गया तो इस शक्तिपुंज को हासिल करने के लिए सभी ने प्रयास शुरू कर दिए. इस क्रम में देवताओं ने गंधर्वों तो दानवों ने दमनाथ को भेजा, लेकिन सभी अपने प्रयासों में नाकाम रहे. मगर दैत्य दमनाथ से संघर्ष की शुरुआत की वजह एक कौआ बना, जिसे वह खाने के लिए उतारू था.

नरीह प्राणी पर राक्षस की बर्बरता का विरोध करने आए शनिदेव ने न सिर्फ कौए की रक्षा की, बल्कि इंद्र को भी चुनौती दे चुके दमनाथ को जलाकर राख कर दिया. इस संघर्ष के दौरान समय का अंदाजा नहीं लगा और सुबह होने को आ गई, ऐसे में उसी कौए ने शनिदेव को अपनी पीठ पर बिठाकर द्रुत वेग से पहाड़, नदियां, रेगिस्तान समेत सारी विपदाओं से पार करवाकर जंगल में उनके स्थान तक सुरक्षित पहुंचा दिया. यहां आकर शनिदेव ने कौए को वापस जाने को कहा तो वह उसने मित्रता की प्रार्थना करते हुए साथ रखने की विनती की. मगर शनिदेव मां के उस निर्देश से बंधे थे, जिसमें उन्होंने शनि को स्पष्ट कहा था, वह किसी से भी संपर्क नहीं रखेंगे, उनके जंगल में होने की जानकारी किसी रूप में किसी बाहरी को पता नहीं चलनी चाहिए.

कौए की कई प्रार्थनाओं पर शनिदेव का मन द्रवित हो उठा, लेकिन उन्होंने इससे पहले उसकी परीक्षा लेने का निर्णय किया. उन्होंने उससे मित्रता के दुष्परिणाम और साथ रहने के नुकसान बताए, उन्होंने कौए को बताया कि मित्रता न सिर्फ व्यक्ति को स्नेहवश कमजोर बनाती है बल्कि यह स्वार्थ की वजह भी बनाती है. इस पर कौए ने उन्हें बताया कि मित्रता व्यक्ति का परमार्थ बढ़ाने के साथ उसे हर काम में मदद के लिए निष्पक्ष विमर्श, सहयोग का भागीदार बनाती है. कौए के समर्पण और स्वामिभक्ति से प्रसन्न होकर शनिदेव ने उसे वाहन के तौर पर स्वीकार कर लिया.

चालाक, खतरे की आहट समझने के साथ रफ्तार 
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक शनिदेव का वाहन कौआ सबसे चालाक प्राणियों में से एक है, यह न सिर्फ खतरे को आसानी से भांप सकता है, बल्कि यह जहां रहता है, वहां सुख और प्रसन्नता का वास रहता है. मान्यता ये भी है कि शनिदेव की कृपा से कौआ कभी बीमार नहीं पड़ता.

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